संविधान की रचना
करते समय संविधान निर्माताओं द्वारा इस बात का ध्यान रखा गया कि धार्मिक और
सांस्कृतिक विविधताओं से युक्त इस देश को एकजुट रखा जाए. विभिन्न
धर्मावलम्बियों के बीच सद्भाव हमेशा कायम रहे और धर्म कभी फिर से विखंडन कि
वजह न बने, इसलिए संविधान में इस बात कि व्यवस्था कि गई कि भारत संघ का
कोई धर्म नहीं होगा. अर्थात भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य रहेगा. लेकिन साथ
ही मौलिक अधिकारों के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता
के अधिकारों का भी समावेश है. जिसके अंतर्गत किसी भी धर्म के अनुयायियों
को अपने धर्म के अनुसार आचरण करने व धर्म का प्रचार-प्रसार करने की अनुज्ञा
है. संविधान में वर्णित यह अधिकार धर्म प्रचार-प्रसार व धर्म परिवर्तन की
छूट देता. इसी क्लाज के आधार पर स्वतन्त्र भारत में धर्म परिवर्तन होते रहे
है. और सर्वाधिक विवाद के विषय भी रहे है. निःसंदेह संवैधानिक व्यवस्था
में भले ही कोई खामी न हो लेकिन इस उन्मुक्त व्यवस्था में अगर कही असंतोष
का पुट उभर कर सामने आया है वह धर्म परिवर्तन के फलस्वरूप उपजा क्लेश. इस
सन्दर्भ में संवैधानिक समीक्षा की आवश्यकता है.
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