Tuesday, June 12, 2012

धर्म आधारित आरक्षण देश के लिए घातक


कहा जाता है कि धर्म अफीम की तरह है. इसका सहारा लेकर हमेशा से ही बड़े-बड़े नरसंहार व राजनीतिक विप्लव हुए हैं. धर्म-उत्प्रेरक का डोज़ इतनी मात्रा में विप्लव कारी द्वारा जनता को दिया जाता है कि जिससे प्रभावित जनता अतिसक्रिय होकर इनके राजनीतिक हित का साधन बनती है.
भारत में पिछली शताब्दियों से लगातार ऐसा होता रहा है. पहले तो मुगलों ने इस्लाम का सहारा लेकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी की और फिर इसी के सहारे वर्षों शासन किया. उनके बाद यह क्रम जारी रहा. अंग्रेजों ने भरतीयो की धर्मपरायणता को और भली प्रकार से समझा और इसका सबसे विकृत प्रयोग किया. अबतक धार्मिक उपदेश या आदेश के माध्यम से लोगो को जागृत करने, उनमें जोश भरने का काम किया जाता था. पर अंग्रेजो ने दो धर्मों के बीच जहर घोलने का काम किया. " फूट डालो और राज करो"  इस नीति के सहारे लगभग २०० सालों तक भारत पर  क्रूर शासन किया और अंततः भारत विभाजित हुआ.
स्वतन्त्र भारत की कमान कांग्रेस के हाथों में आई. कांग्रेस ने अंग्रेजों से विरासत में प्राप्त इस नीति का और अधिक परिपक्व रूप में इस्तेमाल किया. "तुष्टिकरण की नीति" तथा जातिगत, धर्मगत राजनीति का सूत्रपात हुआ. इसके सहारे कांग्रेस ने लगभग पांच दशक तक निर्द्वंद्व शासन किया. बाद में भाजपा ने इस नीति को सनातन राष्ट्रवाद का नाम देकर राजनीतिक साधन बनाया. और अब धर्म आधारित आरक्षण राजनीतिक  प्रयोगों का अगला चरण है. कांग्रेस का यह प्रयोग सफल होता है या नहीं यह भविष्य के चुनावों पर निर्भर है. लेकिन हर बार की तरह इसके परिणाम भी घातक हो सकतें है. जिस प्रकार विभाजन की कीमत पर देश को आजादी हाशिल हुई थी उसी प्रकार सत्ता की इस होड़ में देश को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, इसका अनुमान वर्त्तमान विपदाग्रस्त हालात को देखकर लगाया जा सकता है.

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