Sunday, November 27, 2011

सरकार भारत के गौरव को स्वीकार करे, सम्मान दे.

किरण बेदी वह नाम है जिसे हम बचपन से आदर्श भारतीय महिला के रूप में पढ़ते चले आ रहे हैं. किरण बेदी जैसी कर्ताब्यनिष्ठ महिला के बारे में पढ़ कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते रहे है. यह सच है की किरण बेदी के बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है. हम हमेशा किरण जैसी निष्ठावान महिला के आदर्शो पर चलने का प्रयत्न करते है एक अग्रज के रूप में उनके आचरण को दूसरों के सामने उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते है. भारत ही नहीं पूरी दुनिया जानती है की वे एक अद्वितीय महिला है जिन्होंने अपने कर्तव्यों को उस दौर में निष्ठा पूर्वक निभाया जब की चाटुकारिता को परम धर्म माना जाता रहा है. भारत सरकार ही नहीं पूरी दुनिया में उन्हें अपने दृढ कर्त्तव्य निर्वहन के लिए सम्म्मानो से नवाजा गया. आज जब उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में हिस्सा लिया तब उन्हें भ्रष्ट साबित करने की कुचेष्टा की जा रही है, यह निंदनीय है. हम इसकी भर्त्सना करते है. जब देश और दुनिया में उन्हें दर्जनों पदको से नवाजा गया तब यही सरकार उनका गुणगान करते नहीं थकी थी. आज जब सरकार के अन्दर कुछ लोगों पर आंच आई है तब एक भारत की बेटी को भी नहीं बख्शा जा रहा है. जिन्होंने देश की सेवा में अपना जीवन न्यवछावर कर दिया. यह लज्जा की बात है. जिस महिला ने देश का गौरव बढ़ाया आज उसे कलंकित किया जा रहा है. हम यह भली भाति जानते है की हमाने प्रतिनिधियों की यात्रा, सुरक्षा और उनके भत्ते इत्यादि के नाम पर अरबों रुपये खर्च किये जा रहे है. हम इसे सहर्ष स्वीकार करते है. क्योकि आखिर वे हमारे लिए ही कार्य कर रहे है. लेकिन इस परम्परा अनेको बार उनके द्वारा दूषित किया जाता रहा है. हवाई यात्राओं में माइलेज के रूप इनके द्वारा करोडो का चूना इस देश की जनता को लगाया जा रहा है  विदेशी यात्राओं में कई अवसरों पर देश की जनता का पैसा अनावश्यक रूप में जन प्रतिनिधियों द्वारा बर्बाद किया जाता रहा है. उसका व्योरा दिया जाना चाहिए एक-एक पैसे का हिसाब जनता के हित में किये जाने वाले कार्यों के परिप्रेक्ष्य में दिया जाना चाहिए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है की वास्तव में बेईमान लोगो द्वारा एक इमानदार के इमानदारी से बेईमानी खोद-खोद कर निकाली जा रही है. यह लज्जाजनक है.
बड़े सौभाग्य की बात है की हमारे प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है. उन्होनो उन परिस्थितियों में देश को सम्भाला है जब की भारत सहित पूरा विश्व उथल-पुथल और आर्थिक मंदी की दौर से गुजर रहा है. यह एक उल्लेखनीय कार्य है. आज जबकि पूरे यूरोप और अमेरिका की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है उनकी कुशल आर्थिक नीतियों का ही परिणाम है की हमारी अर्थव्यवस्था जो बहुतकुछ वैश्विक परिस्थियों पर निर्भर है बिखरने से बची रही. इस तथ्य को हमें समझना चाहिए. साथ ही हमारे प्रधान मंत्री को भी इस बात पर ध्यान देना चाहिए की अरविन्द केजरारिवाल , किरण बेदी जैसे लोग  हमारे भारत के गौरव के रूप में उभर कर सामने आये है उन्हें स्वीकार करें, सम्मान दें. आज हमारे लिए सौभाग्य की बात है की संकट की घड़ी में अन्ना हजारे जैसे नेता ने पूए देश को एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न किया है. तो वहीँ राहुल गांधी जैसे युवा अपनी गैरवमई विरासत को आगे बढाते हुए देश के गरीबों और किसानो के दुःख दर्द को दूर करने के लिए कमर कास लिया. यह शुभ लक्षण है इसे स्वीकार करने का समय आ गया है. यह सही समय है की इस ऊर्जा का इस्तेमाल देश के विकास में करें न की एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में. यह ध्यान रहे की मरे हुए कुत्ते को कोई लात नहीं मारता. आलोचना भी उसी की होती जो उसके योग्य होता अगर व्यक्ति सही दिशा में है तो आलोचना से उसका कद और ऊचा होता जाता है.

Friday, November 11, 2011

क्रिकेट आस्ट्रेलिया की केपटाउन में दुखद मौत

क्रिकेट आस्ट्रेलिया की केपटाउन में दुखद मौत हो गई है. उसकी आत्मा की शांति के लिए हम क्रिकेट प्रेमियों से दो मिनट मौन रखने की अपील करते है. अब विश्व क्रिकेट में चैम्पियन के रूप में स्थापित टीम की कल्पना करना मुश्किल होगा.

Thursday, April 7, 2011

दृढ पहल

अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किया गया आन्दोलन देश के बिगड़े हुए हालात के मद्देनजर बिलकुल सही कदम है। आन्दोलन को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है क्योकि अन्ना और समर्थको द्वारा उठाया गया यह सार्थक और न्यायसंगत कदम है। लम्बे समय से इस प्रकार के दृढ पहल की आवश्यकता थी। अन्ना के नेतृत्व ने आन्दोलन को सही दिशा प्राप्त हुई है।

कांग्रेस के युवराज की प्रतिष्ठा दांव पर

गांधीवादी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिलकुल सही समय पर मुहीम छेड़ कर सरकार को होश में लेन का प्रयत्न किया हैअन्ना का यह प्रयन्त्न तो सार्थक है ही साथ ही आज जबकि भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, समाज और देश के लिए आवश्यक भी हैलेकिन आश्चर्य नहीं हिगा यदि राजनीतिक दलों की कुचेष्टा से यह आन्दोलन निष्फल साबित हो जायभ्रष्टाचार में गले तक डूबे  राजनेता इस आन्दोलन को विफल बनाने के लिए हर संभव कुचक्र रचेंगेअन्ना की जन लोकपाल बिल की माग को स्वीकृति देने का दायित्व उन नेताओं पर है जो की खुद इस भ्रष्टाचार रूपी दलदल में धसे हुए हैऔर अन्ना की मांग को स्वीकृति देना माने  खुद  को जेल के सलाखों के पीछे धकेलना होगाऐसे में आन्दोलन को हर कीमत पर विफल बनाने का ही प्रयत्न किया जायेगा, इसके लिए  नाम मात्र का लोकपाल बनाकर केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने का प्रयत्न करेगी. केंद्र सरकार एक प्रकार से कुंठा की भावना से ग्रसित है. केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियो को ऐसा महसूस होने लगा है कि उनका कोई अस्तिव ही नहीं है. जनलोकापाल उनके प्रयासों से विधायिका पारित करेगी और श्रेय ले उड़ेंगे अन्ना हजारे. हीन भावना से ग्रसित होने के कारण वे एक अच्छा क़ानून बनाने से हिचक रहे है महज श्रेय न हाशिल होने के डर से और अहम को चोट पहुच रही है यह दूसरा आघात है. तिस पर उत्तर प्रदेश का आगामी विधान सभा चुनाव कांग्रेस के युवराज के लिए प्रतिष्ठा का  प्रश्न बन गया है. इन सबके अलावा  अगर किसी उपद्रवी ने टीम अन्ना पर हमला बोला तो केंद्र सरकार सांसत  में फसेगी ही मिशन उत्तर प्रदेश पर काली छाया मडराने लगेगी. वैसे भी कांग्रेस के रणनीतिकारों ने टीम अन्ना को मशहूर होने में सबसे अधिक योगदान दिया है.  अरविन्द केजरीवाल को टीम अन्ना कि बैठक बुलाकर कांग्रेस के इन रणनीतिकारों को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए.

Sunday, April 3, 2011

चैम्पियनो की मानिंद विश्व कप जीता है,फिर क्यों न जश्न मानाये

भारत की विश्वकप विजय वास्तव में अद्भुत एवं ऐतिहासिक हैक्रिकेट खेलने वाले हर मुल्क का पहला ख़्वाब रहता है विश्व कप जीतना और भारत जैसे देश के लिए तो यह जुनून की हद को भी पार कर जाता हैबच्चे, जवान, बुजुर्ग सभी क्रिकेट के खुमार में सराबोर दिखाई पड़ते हैअमिताभ बच्चन जैसे महानायक का विश्वकप जीतने के उन्माद में चीख चिल्लाकर खुशी जाहिर करना हो, या सोनिया गांधी जैसी शीर्ष राजनेत्री द्वारा करोडो दर्शको के समक्ष बच्चो जैसे उछल कर समर्थन और उत्साह प्रकट करना, यह सब इस देश के क्रिकेट उन्माद के चरम स्तर को प्रकट करता हैवास्तव में यह जीत हर मायने में ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि अतुलनीय भी हैक्रिकेट का जन्मदाता देश इंग्लैण्ड भी भी विश्वकप के ३६ सालो के इतिहास में विश्व कप जीतने के लिए आज तक तरसता ही रहा है, आज जबकि उसकी सर्वश्रेष्ट टीम थी जो एशेज जीत कर आई थी लेकिन अपने देशवासियों के लिए एक अदद वर्ल्ड कप नहीं जीत सकीविश्व की सर्वश्रेष्ट टीमो में से एक दक्षिण अफ्रीका जिसके पास हाशिम अमला, कालिस, और डेरेल स्टेन जैसे सर्वश्रेट खिलाड़ी है, उसका सपना भी हर बार की तरह टूट गयायही हाल न्यूजीलैंड टीम का भी है जो की अबा तक विश्व कप जीतने का ख़्वाब सजोये खाली हाथ वापस अपने देश वापस गयीभारत ने शिर्फ़ आस्ट्रेलिया की बादशाहत को ख़त्म कर उसके लगातार चौथी बार विश्वकप जीतने के ख़्वाब को चकनाचूर किया बल्कि श्रीलंका और पकिस्तान के दोबारा विश्वकप जीतने की उम्मीदों पर भी पानी फेर दियाइतने संघर्ष के बाद यदि हमने चैम्पियनो की मानिंद विश्व कप पर कब्जा जमाया है तो फिर क्यों हम जश्न मनाये

Monday, March 28, 2011

कलई न खुलनॆ पायॆ

भारत‍‍ पाकिस्तान विश्वकप सॆमिफाईनल कॊ लॆकर रॊमाच अपनॆ चरम पर है लॊग मैच दॆखनॆ कॆ लियॆ इतनॆ उतावलॆ हॊ रहॆ है कि व्यग्रता मॆ उनका समय कटना मुहाल हॊ रहा है, शहर मॆ सट्टा खॆलनॆ वालॊ कॆ लियॆ तॊ यह किसी सुनहरॆ मौकॆ सॆ कम नही कल ऎक व्यक्ति नॆ कहा कि उसनॆ श्रीलका कॆ ऊपर सट्टा लगाया है ऎक हजार कॆ पाच हजार‌ हॊ जायॆगॆ, श्रीलका कॊ जितानॆ कॆ लियॆ वह इतना व्यग्र हॊ रहा था जितनी व्यग्रता आमतौर पर भरत‍ पाक मैच कॊ लॆकर भी नही हॊती|छॊटॆ स्तर पर छॊटा खॆल और बडॆ लॆवल पर बडी बॊली, बोली हर तरफ् लगायी जा रही है|कॊई अछूता नही है किसी न किसी प्रकार सबकी दिलचश्पी है इसमॆ| खिलाडियॊ कॆ खॆल स्तर का आकलन करना है या जीत हार का पूर्वानुमान करना सट्टॆ कॆ भाव कॊ आधार बनाकर ही सभी तथ्यॊ का विश्लॆशण करनॆ मॆ क्रिकॆट कॆ पन्डित लगॆ है| क्रिकॆट कॆ आड मॆ व्यापार की सरगर्मिया भी उफान लॆ रही है|व्यापरिक उफान का आलम यह् है कि इस सॆमिफाइनल मैच कॆ लियॆ व्यापारिक ऐड‌ का भाव 5 लाख प्रति 10 सॆकॆन्ड सॆ लगातार बढतॆ हुऎ 18 लाख प्रति दस सॆकॆन्ड तक जा पहुचा| इधर क्रिकॆट कॆ खॆल‌ नॆ अब‌ युद्ध का रूप धर लिया है जिसकी उत्तॆजना चरम पर है, तॊ इस उत्तॆजना कॊ भुनाकर टीवी मीडिया अपना व्यापार और टीआरपी बढानॆ का सुनहरा मौका भुनानॆ मॆ लगी है|लॆकिन आईसीसी नॆ टीवी मीडिया पर प्रतिबन्ध लगाकर उनकी सारी उम्मीदॊ पर तुषारापात कर‌ दिया है| नुकसान तॊ दर्शकॊ कॊ भी हॊगा क्यॊकि उनकी पल पल की जॊ खुराक टीवी मिडिया दॆती थी उससॆ वचित ही रहना पडॆगा|आईसीसी कॆ प्रतिबनन्ध लगानॆ कॆ फरमान कॊ बीसीसीआई की मौन स्वीक्रिति है ऐसा जान पडता है वरना वह् चुप नही बैठती टाग जरूर अडाती|ऎक विश्लॆशक की राय मानॆ तॊ इस पुरॆ आयॊजन मॆ बहुत बडा घलमॆल हॊ रहा है भलॆ ही मनमॊहन सरकार द्वारा पकिस्तान कॆ प्रधानमन्त्री गिलानी की आवाभगत करकॆ अभी लॊगॊ का ध्यान क्रिकॆट् डिप्लॊमॆसी मे भटकाया जा रहा हॊ लॆकिन कामनवॆल्थ की तरह इस बार भी भाडा फूटॆगा जरूर और बलि का बकरा कलमाडी की ही तर्ज पर किसी बीसीसीआई अधिकारी कॊ बना दिया जायॆगा|हर समभव कॊशिस‌ तॊ यही रहॆगी की कलई न खुलनॆ पायॆ|

मनमोहन सरकार द्वारा राजनीतिक भूलो की पुनरावृत्ति

भारत पर चीन के १९६२ के आक्रमण के बाद से ही भारत चीन रिश्तो में कभी भी अपेक्षित सुधार नहीं हुआ। इस युद्ध में अमेरिकी दबाव में आकार चीन ने युद्धविराम की घोषणा करते हुए भारतीय भूभाग से तो अपनी सेना वापस बुला ली थी लेकिन अक्साई चीन सहित लगभग चौरासी हजार वर्गमील भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा करके भारत की संप्रभुता पर बहुत गहरी चोट पहुचाई। इन सबके बावजूद भी चीन की भारत नीति हमेशा आक्रामक ही रही। वह कभी भी भारत को आक्रामक होने का मौका ही नहीं देना चाहता । इससे पहले की भारत अपने भूभाग को दृढ़ता के साथ वापस लेने का प्रयास कर सके चीन ने अरुणांचल प्रदेश पर अपना दावा ठोक दिया। बड़ी विडम्बना है की भारत सरकार शिर्फ़ विरोध प्रकट करने में अपना समय व्यतीत कर रही है वह भी बहुत ही संयमित होकर। भारतीय रणनीतिकारो को यह डर सताने लगता है की कही चीन के साथ उसके रिश्ते ख़राब न हो जाये। ऐसा लगता है की जैसे चीन के साथ बहुत मधुर सम्बन्ध हों।आजादी के पहले जिस तिब्बत पर ब्रिटिश भारतीय रेजिडेंट निति नियामक थे। उस तिब्बत को नेहरू जी ने चीन को दोस्ती के उपहार स्वरूप दे दिया था। इसका परिणाम यह निकला की अज वह भारतीय क्षेत्र तवांग को ही तिब्बत का हिस्सा बताने पर तुला हुआ है| कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश पर वह दोहरी नीति का इस्तेमाल कर भारत को दबाव में रहने के लिए मजबूर कर रहा है।
मनमोहन सरकार ने चीन के साथ सीमा विवाद के मुद्दे पर कोई दृढ पहल न करके विगत सरकार द्वारा की जा रही राजनीतिक भूलो की पुनरावृत्ति ही की है | उनके पास बचने का अच्छा बहाना है यहाँ तो लम्बे समय से चला आ रहा सीमा विवाद है| भारतीय भूभाग पर चीन दोवारा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को तोड़कर धृष्टता पूर्वक किये गए कब्जे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मजबूती के साठुथाने के बजाय बड़ी आसानी के साथ इसे सीमा विवाद मान लिया है।
अभी भी कोई दृढ कूटनीतिक पहल न करना मनमोहन सरकार की कूटनीतिक विफलता कही जा सकती है, जो की चीन के साथ व्यापारिक हितो के मुद्दे पर भी फिसड्डी साबित हुई है।