Monday, March 28, 2011

कलई न खुलनॆ पायॆ

भारत‍‍ पाकिस्तान विश्वकप सॆमिफाईनल कॊ लॆकर रॊमाच अपनॆ चरम पर है लॊग मैच दॆखनॆ कॆ लियॆ इतनॆ उतावलॆ हॊ रहॆ है कि व्यग्रता मॆ उनका समय कटना मुहाल हॊ रहा है, शहर मॆ सट्टा खॆलनॆ वालॊ कॆ लियॆ तॊ यह किसी सुनहरॆ मौकॆ सॆ कम नही कल ऎक व्यक्ति नॆ कहा कि उसनॆ श्रीलका कॆ ऊपर सट्टा लगाया है ऎक हजार कॆ पाच हजार‌ हॊ जायॆगॆ, श्रीलका कॊ जितानॆ कॆ लियॆ वह इतना व्यग्र हॊ रहा था जितनी व्यग्रता आमतौर पर भरत‍ पाक मैच कॊ लॆकर भी नही हॊती|छॊटॆ स्तर पर छॊटा खॆल और बडॆ लॆवल पर बडी बॊली, बोली हर तरफ् लगायी जा रही है|कॊई अछूता नही है किसी न किसी प्रकार सबकी दिलचश्पी है इसमॆ| खिलाडियॊ कॆ खॆल स्तर का आकलन करना है या जीत हार का पूर्वानुमान करना सट्टॆ कॆ भाव कॊ आधार बनाकर ही सभी तथ्यॊ का विश्लॆशण करनॆ मॆ क्रिकॆट कॆ पन्डित लगॆ है| क्रिकॆट कॆ आड मॆ व्यापार की सरगर्मिया भी उफान लॆ रही है|व्यापरिक उफान का आलम यह् है कि इस सॆमिफाइनल मैच कॆ लियॆ व्यापारिक ऐड‌ का भाव 5 लाख प्रति 10 सॆकॆन्ड सॆ लगातार बढतॆ हुऎ 18 लाख प्रति दस सॆकॆन्ड तक जा पहुचा| इधर क्रिकॆट कॆ खॆल‌ नॆ अब‌ युद्ध का रूप धर लिया है जिसकी उत्तॆजना चरम पर है, तॊ इस उत्तॆजना कॊ भुनाकर टीवी मीडिया अपना व्यापार और टीआरपी बढानॆ का सुनहरा मौका भुनानॆ मॆ लगी है|लॆकिन आईसीसी नॆ टीवी मीडिया पर प्रतिबन्ध लगाकर उनकी सारी उम्मीदॊ पर तुषारापात कर‌ दिया है| नुकसान तॊ दर्शकॊ कॊ भी हॊगा क्यॊकि उनकी पल पल की जॊ खुराक टीवी मिडिया दॆती थी उससॆ वचित ही रहना पडॆगा|आईसीसी कॆ प्रतिबनन्ध लगानॆ कॆ फरमान कॊ बीसीसीआई की मौन स्वीक्रिति है ऐसा जान पडता है वरना वह् चुप नही बैठती टाग जरूर अडाती|ऎक विश्लॆशक की राय मानॆ तॊ इस पुरॆ आयॊजन मॆ बहुत बडा घलमॆल हॊ रहा है भलॆ ही मनमॊहन सरकार द्वारा पकिस्तान कॆ प्रधानमन्त्री गिलानी की आवाभगत करकॆ अभी लॊगॊ का ध्यान क्रिकॆट् डिप्लॊमॆसी मे भटकाया जा रहा हॊ लॆकिन कामनवॆल्थ की तरह इस बार भी भाडा फूटॆगा जरूर और बलि का बकरा कलमाडी की ही तर्ज पर किसी बीसीसीआई अधिकारी कॊ बना दिया जायॆगा|हर समभव कॊशिस‌ तॊ यही रहॆगी की कलई न खुलनॆ पायॆ|

मनमोहन सरकार द्वारा राजनीतिक भूलो की पुनरावृत्ति

भारत पर चीन के १९६२ के आक्रमण के बाद से ही भारत चीन रिश्तो में कभी भी अपेक्षित सुधार नहीं हुआ। इस युद्ध में अमेरिकी दबाव में आकार चीन ने युद्धविराम की घोषणा करते हुए भारतीय भूभाग से तो अपनी सेना वापस बुला ली थी लेकिन अक्साई चीन सहित लगभग चौरासी हजार वर्गमील भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा करके भारत की संप्रभुता पर बहुत गहरी चोट पहुचाई। इन सबके बावजूद भी चीन की भारत नीति हमेशा आक्रामक ही रही। वह कभी भी भारत को आक्रामक होने का मौका ही नहीं देना चाहता । इससे पहले की भारत अपने भूभाग को दृढ़ता के साथ वापस लेने का प्रयास कर सके चीन ने अरुणांचल प्रदेश पर अपना दावा ठोक दिया। बड़ी विडम्बना है की भारत सरकार शिर्फ़ विरोध प्रकट करने में अपना समय व्यतीत कर रही है वह भी बहुत ही संयमित होकर। भारतीय रणनीतिकारो को यह डर सताने लगता है की कही चीन के साथ उसके रिश्ते ख़राब न हो जाये। ऐसा लगता है की जैसे चीन के साथ बहुत मधुर सम्बन्ध हों।आजादी के पहले जिस तिब्बत पर ब्रिटिश भारतीय रेजिडेंट निति नियामक थे। उस तिब्बत को नेहरू जी ने चीन को दोस्ती के उपहार स्वरूप दे दिया था। इसका परिणाम यह निकला की अज वह भारतीय क्षेत्र तवांग को ही तिब्बत का हिस्सा बताने पर तुला हुआ है| कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश पर वह दोहरी नीति का इस्तेमाल कर भारत को दबाव में रहने के लिए मजबूर कर रहा है।
मनमोहन सरकार ने चीन के साथ सीमा विवाद के मुद्दे पर कोई दृढ पहल न करके विगत सरकार द्वारा की जा रही राजनीतिक भूलो की पुनरावृत्ति ही की है | उनके पास बचने का अच्छा बहाना है यहाँ तो लम्बे समय से चला आ रहा सीमा विवाद है| भारतीय भूभाग पर चीन दोवारा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को तोड़कर धृष्टता पूर्वक किये गए कब्जे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मजबूती के साठुथाने के बजाय बड़ी आसानी के साथ इसे सीमा विवाद मान लिया है।
अभी भी कोई दृढ कूटनीतिक पहल न करना मनमोहन सरकार की कूटनीतिक विफलता कही जा सकती है, जो की चीन के साथ व्यापारिक हितो के मुद्दे पर भी फिसड्डी साबित हुई है।