Friday, June 1, 2012

बिखराव कि दशा में अन्ना आन्दोलन


एक के बाद एक आन्दोलन से जुड़े अहम सदस्य टीम से अलग हो रहे है. यह बेवजह है ऐसा कहना ठीक नहीं होगा. सबसे मुख्य वजह जो है वह है अहम का टकराव. भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के समय भी यही हुआ था जब अहम् , विचारधाराओं में विभ्रम और टकराव के कारण अंततः कांग्रेस दो धड़े में बंट गया था जिसके कारण हमें जो आज़ादी हमे १९वी सदी में मिलनी थी उसके लिए हमें चार दशकों तक पुनः इंतज़ार करना पड़ा. उस समय तो हमारे पास गांधी, पटेल, नेहरू, सुभाष जैसे नेताओं का मजबूत नेतृत्व हाशिल था. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चल रहे आन्दोलन को बिखरने नहीं दिया.

परन्तु आज स्थिति इसके विपरीत है, निजी अहम् के कारण विखराव के कागार पर पहुँच चुके इस आन्दोलन को एक सूत्र में बांधने का माद्दा अन्ना छोड़ किसी सदस्य के अन्दर नजर नहीं आता है. ऐसी स्थिति में सद्भाव छोड़ टकराव में अपनी ऊर्जा बर्बाद कर आन्दोलन टीम के सदस्य भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को बेहद कमजोर स्थिति में लाकर खड़ा कर चुके हैं. कल तक जो जनसमूह पुरे जोशोखरोश के साथ आन्दोलन के साथ खड़ा था आज आन्दोलन टीम के बीच चल रहे तमाशे के कारण आन्दोलन से अलग होते जा रहे है. इसके लिए प्रमुख सदस्यों के बीच अहम् का टकराव प्रमुख कारण है.

कई बार केजरीवाल, सिसोदिया और विश्वास ने इसे टीम के सदस्यों की वैचारिक स्वतंत्रता का नाम देकर अपनी उठापटक भरी गतिविधियों को जायज ठहराने की चेष्टा की और आपसी फूट के अवसर पर सरकार को कोसने लगते है. यह तो दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. अब जबकि सरकार का मनोबल लगभग टूट चुका है तो ऐसी स्थिति में आन्दोलन को मजबूत करने के बजाय आन्दोलन टीम अपना मनोबल खोती जा रही है.

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