अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किया गया आन्दोलन देश के बिगड़े हुए हालात के मद्देनजर बिलकुल सही कदम है। आन्दोलन को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है क्योकि अन्ना और समर्थको द्वारा उठाया गया यह सार्थक और न्यायसंगत कदम है। लम्बे समय से इस प्रकार के दृढ पहल की आवश्यकता थी। अन्ना के नेतृत्व ने आन्दोलन को सही दिशा प्राप्त हुई है।
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Thursday, April 7, 2011
कांग्रेस के युवराज की प्रतिष्ठा दांव पर
गांधीवादी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिलकुल सही समय पर मुहीम छेड़ कर सरकार को होश में लेन का प्रयत्न किया है। अन्ना का यह प्रयन्त्न तो सार्थक है ही साथ ही आज जबकि भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, समाज और देश के लिए आवश्यक भी है। लेकिन आश्चर्य नहीं हिगा यदि राजनीतिक दलों की कुचेष्टा से यह आन्दोलन निष्फल साबित हो जाय। भ्रष्टाचार में गले तक डूबे राजनेता इस आन्दोलन को विफल बनाने के लिए हर संभव कुचक्र रचेंगे। अन्ना की जन लोकपाल बिल की माग को स्वीकृति देने का दायित्व उन नेताओं पर है जो की खुद इस भ्रष्टाचार रूपी दलदल में धसे हुए है। और अन्ना की मांग को स्वीकृति देना माने खुद को जेल के सलाखों के पीछे धकेलना होगा। ऐसे में आन्दोलन को हर कीमत पर विफल बनाने का ही प्रयत्न किया जायेगा, इसके लिए नाम मात्र का लोकपाल बनाकर केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने का प्रयत्न करेगी. केंद्र सरकार एक प्रकार से कुंठा की भावना से ग्रसित है. केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियो को ऐसा महसूस होने लगा है कि उनका कोई अस्तिव ही नहीं है. जनलोकापाल उनके प्रयासों से विधायिका पारित करेगी और श्रेय ले उड़ेंगे अन्ना हजारे. हीन भावना से ग्रसित होने के कारण वे एक अच्छा क़ानून बनाने से हिचक रहे है महज श्रेय न हाशिल होने के डर से और अहम को चोट पहुच रही है यह दूसरा आघात है. तिस पर उत्तर प्रदेश का आगामी विधान सभा चुनाव कांग्रेस के युवराज के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है. इन सबके अलावा अगर किसी उपद्रवी ने टीम अन्ना पर हमला बोला तो केंद्र सरकार सांसत में फसेगी ही मिशन उत्तर प्रदेश पर काली छाया मडराने लगेगी. वैसे भी कांग्रेस के रणनीतिकारों ने टीम अन्ना को मशहूर होने में सबसे अधिक योगदान दिया है. अरविन्द केजरीवाल को टीम अन्ना कि बैठक बुलाकर कांग्रेस के इन रणनीतिकारों को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए.
Sunday, April 3, 2011
चैम्पियनो की मानिंद विश्व कप जीता है,फिर क्यों न जश्न मानाये
भारत की विश्वकप विजय वास्तव में अद्भुत एवं ऐतिहासिक है। क्रिकेट खेलने वाले हर मुल्क का पहला ख़्वाब रहता है विश्व कप जीतना और भारत जैसे देश के लिए तो यह जुनून की हद को भी पार कर जाता है। बच्चे, जवान, बुजुर्ग सभी क्रिकेट के खुमार में सराबोर दिखाई पड़ते है। अमिताभ बच्चन जैसे महानायक का विश्वकप जीतने के उन्माद में चीख चिल्लाकर खुशी जाहिर करना हो, या सोनिया गांधी जैसी शीर्ष राजनेत्री द्वारा करोडो दर्शको के समक्ष बच्चो जैसे उछल कर समर्थन और उत्साह प्रकट करना, यह सब इस देश के क्रिकेट उन्माद के चरम स्तर को प्रकट करता है। वास्तव में यह जीत हर मायने में ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि अतुलनीय भी है। क्रिकेट का जन्मदाता देश इंग्लैण्ड भी भी विश्वकप के ३६ सालो के इतिहास में विश्व कप जीतने के लिए आज तक तरसता ही रहा है, आज जबकि उसकी सर्वश्रेष्ट टीम थी जो एशेज जीत कर आई थी लेकिन अपने देशवासियों के लिए एक अदद वर्ल्ड कप नहीं जीत सकी। विश्व की सर्वश्रेष्ट टीमो में से एक दक्षिण अफ्रीका जिसके पास हाशिम अमला, कालिस, और डेरेल स्टेन जैसे सर्वश्रेट खिलाड़ी है, उसका सपना भी हर बार की तरह टूट गया। यही हाल न्यूजीलैंड टीम का भी है जो की अबा तक विश्व कप जीतने का ख़्वाब सजोये खाली हाथ वापस अपने देश वापस गयी। भारत ने न शिर्फ़ आस्ट्रेलिया की बादशाहत को ख़त्म कर उसके लगातार चौथी बार विश्वकप जीतने के ख़्वाब को चकनाचूर किया बल्कि श्रीलंका और पकिस्तान के दोबारा विश्वकप जीतने की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया। इतने संघर्ष के बाद यदि हमने चैम्पियनो की मानिंद विश्व कप पर कब्जा जमाया है तो फिर क्यों न हम जश्न मनाये।
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