Friday, April 23, 2021

प्लाज्मा डोनर भोपाल के लिए

भोपाल में किसी को प्लाज्मा चाहिए तो ये लोग डोनेशन लिए तैयार हैं।

1.Srikanth O+ ,9700655144.
2.Mani O+ ,7401535415
3.Sriram B+ ,8056051072
4.Ramesh B+ , 9884727286
5.Suresh B+,  8148916988
6.Murali  A+. 7299399392
7. PRABHU. O+ 9884641396
8.Vijay. AB-ve. 9790954376
9.Jai. B-    99623610622
10.Raja A1+ 978986531
11.Perumal O+
12.KALIDASS A+ 13.9943948951
14.Abbas A1- 9551414146
15.Rajalingam B+ 9626696882
Sundar O+ 9941418736
16.Yuvaraj AB+ 8124291412
17.jagir B+. ,9042670928
18.suresh Kumar O+. 9840939939 
19.aravind O+, 9176980878.
20.Manikandan A+ 9566420317.
21.Senthilkumar B+,9962688252.
22. praveen kumar B +
9094314313
23.mohanraj B positive
      9444464789
24.manikandan O+
       9791097653
25. C.prathap O +ve  9940521093
26.Isaianand o+. 7845548466
27. S THILAK O+ ve , 861810723.   
28. Anbumani O+ (9566001676)
29.Syed A+  9551457239
30.M.jagadeesanvb A➕(7845662500)
31.Karthikeyan o+(9884400371)
32.Daniel 
B+ (9003148805)
33.Sridhar o+ (9500119761)
34.V.Mohan 0+ (9940639557)                        
35, jawahar b+ve 9600162581
36.v.karthick A1+ (9578828854) 
37.C.Rajkumar B+ve 
9790844373
38. Ashok Kumar B+
      9791142469
39.M.KARUKKUVEL Raj B positve -9087425095
40.NARENDRAN A1B+(9500148984)
41.edwin. O- 9791150119 42. Selvaganesh A+ (9940187708)
43.siddiq O+. 9094666918
44.a.inba kumar o+ ve  9840301747
45.vignesh B+ 9884556995
46.vogneshgiri B+ 9043677660
47.anbarasan O+ 9840862846
48.M.Vimal kumar o+ 9677279760
49.Jeeva AB- (ph-8056292339)
50.sarath A+ 9551113240  
51.vazir o+(8754034986)
52.Dinesh A1+(8122288878)
53. Balakrish  O+ (9047904837)                          
54.Madhan AB+(9940391891,9498142021)55. P.P.PRADHEESH O+ve +91-8903612888)
56. SHAKKUR B+ve+971552177084)
57. Venkat B-ve 9666661705
58. Roshan A+ve 9100954327
59.Vinod 9985003839
60. Joshua B-ve 9704972553 
61.Arun B+ve 9951997775
62. Dr.v.rajnikanth O+  9032807745
63.Devender b+ 9716366570.  
64. AB+ Ajay
9810384028

Tuesday, June 12, 2012

धर्म आधारित आरक्षण देश के लिए घातक


कहा जाता है कि धर्म अफीम की तरह है. इसका सहारा लेकर हमेशा से ही बड़े-बड़े नरसंहार व राजनीतिक विप्लव हुए हैं. धर्म-उत्प्रेरक का डोज़ इतनी मात्रा में विप्लव कारी द्वारा जनता को दिया जाता है कि जिससे प्रभावित जनता अतिसक्रिय होकर इनके राजनीतिक हित का साधन बनती है.
भारत में पिछली शताब्दियों से लगातार ऐसा होता रहा है. पहले तो मुगलों ने इस्लाम का सहारा लेकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी की और फिर इसी के सहारे वर्षों शासन किया. उनके बाद यह क्रम जारी रहा. अंग्रेजों ने भरतीयो की धर्मपरायणता को और भली प्रकार से समझा और इसका सबसे विकृत प्रयोग किया. अबतक धार्मिक उपदेश या आदेश के माध्यम से लोगो को जागृत करने, उनमें जोश भरने का काम किया जाता था. पर अंग्रेजो ने दो धर्मों के बीच जहर घोलने का काम किया. " फूट डालो और राज करो"  इस नीति के सहारे लगभग २०० सालों तक भारत पर  क्रूर शासन किया और अंततः भारत विभाजित हुआ.
स्वतन्त्र भारत की कमान कांग्रेस के हाथों में आई. कांग्रेस ने अंग्रेजों से विरासत में प्राप्त इस नीति का और अधिक परिपक्व रूप में इस्तेमाल किया. "तुष्टिकरण की नीति" तथा जातिगत, धर्मगत राजनीति का सूत्रपात हुआ. इसके सहारे कांग्रेस ने लगभग पांच दशक तक निर्द्वंद्व शासन किया. बाद में भाजपा ने इस नीति को सनातन राष्ट्रवाद का नाम देकर राजनीतिक साधन बनाया. और अब धर्म आधारित आरक्षण राजनीतिक  प्रयोगों का अगला चरण है. कांग्रेस का यह प्रयोग सफल होता है या नहीं यह भविष्य के चुनावों पर निर्भर है. लेकिन हर बार की तरह इसके परिणाम भी घातक हो सकतें है. जिस प्रकार विभाजन की कीमत पर देश को आजादी हाशिल हुई थी उसी प्रकार सत्ता की इस होड़ में देश को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, इसका अनुमान वर्त्तमान विपदाग्रस्त हालात को देखकर लगाया जा सकता है.

Friday, June 1, 2012

धर्म परिवर्तन पर संवैधानिक समीक्षा की आवश्यकता






 
संविधान की रचना करते समय संविधान निर्माताओं द्वारा इस बात का ध्यान रखा गया कि धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं से युक्त इस देश को एकजुट रखा जाए. विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच सद्भाव हमेशा कायम रहे और धर्म कभी फिर से विखंडन कि वजह न बने, इसलिए संविधान में इस बात कि व्यवस्था कि गई कि भारत संघ का कोई धर्म नहीं होगा. अर्थात भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य रहेगा. लेकिन साथ ही मौलिक अधिकारों के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का भी समावेश है. जिसके अंतर्गत किसी भी धर्म के अनुयायियों को अपने धर्म के अनुसार आचरण करने व धर्म का प्रचार-प्रसार करने की अनुज्ञा है. संविधान में वर्णित यह अधिकार धर्म प्रचार-प्रसार व धर्म परिवर्तन की छूट देता. इसी क्लाज के आधार पर स्वतन्त्र भारत में धर्म परिवर्तन होते रहे है. और सर्वाधिक विवाद के विषय भी रहे है. निःसंदेह संवैधानिक व्यवस्था में भले ही कोई खामी न हो लेकिन इस उन्मुक्त व्यवस्था में अगर कही असंतोष का पुट उभर कर सामने आया है वह धर्म परिवर्तन के फलस्वरूप उपजा क्लेश. इस सन्दर्भ में संवैधानिक समीक्षा की आवश्यकता है.

बिखराव कि दशा में अन्ना आन्दोलन


एक के बाद एक आन्दोलन से जुड़े अहम सदस्य टीम से अलग हो रहे है. यह बेवजह है ऐसा कहना ठीक नहीं होगा. सबसे मुख्य वजह जो है वह है अहम का टकराव. भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के समय भी यही हुआ था जब अहम् , विचारधाराओं में विभ्रम और टकराव के कारण अंततः कांग्रेस दो धड़े में बंट गया था जिसके कारण हमें जो आज़ादी हमे १९वी सदी में मिलनी थी उसके लिए हमें चार दशकों तक पुनः इंतज़ार करना पड़ा. उस समय तो हमारे पास गांधी, पटेल, नेहरू, सुभाष जैसे नेताओं का मजबूत नेतृत्व हाशिल था. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चल रहे आन्दोलन को बिखरने नहीं दिया.

परन्तु आज स्थिति इसके विपरीत है, निजी अहम् के कारण विखराव के कागार पर पहुँच चुके इस आन्दोलन को एक सूत्र में बांधने का माद्दा अन्ना छोड़ किसी सदस्य के अन्दर नजर नहीं आता है. ऐसी स्थिति में सद्भाव छोड़ टकराव में अपनी ऊर्जा बर्बाद कर आन्दोलन टीम के सदस्य भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को बेहद कमजोर स्थिति में लाकर खड़ा कर चुके हैं. कल तक जो जनसमूह पुरे जोशोखरोश के साथ आन्दोलन के साथ खड़ा था आज आन्दोलन टीम के बीच चल रहे तमाशे के कारण आन्दोलन से अलग होते जा रहे है. इसके लिए प्रमुख सदस्यों के बीच अहम् का टकराव प्रमुख कारण है.

कई बार केजरीवाल, सिसोदिया और विश्वास ने इसे टीम के सदस्यों की वैचारिक स्वतंत्रता का नाम देकर अपनी उठापटक भरी गतिविधियों को जायज ठहराने की चेष्टा की और आपसी फूट के अवसर पर सरकार को कोसने लगते है. यह तो दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. अब जबकि सरकार का मनोबल लगभग टूट चुका है तो ऐसी स्थिति में आन्दोलन को मजबूत करने के बजाय आन्दोलन टीम अपना मनोबल खोती जा रही है.

गो हत्या पर राष्ट्रीय स्तर पर लगे पाबन्दी

भारत में बड़ी तादाद में लोग गाय को पवित्र मानते हैं। लेकिन आप यह जानकर हैरान हो सकते हैं कि 2012 में भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा गोमांस निर्यात करने वाला देश बन जाएगा।

यूएसडीए की विदेशी कृषि सेवा के आंकड़े के मुताबिक इस साल के अंत तक भारत ऑस्ट्रेलिया को पीछे छोड़ते हुए 15 लाख मीट्रिक टन गोमांस का निर्यात करेगा। जानकारों के मुताबिक भारत से गोमांस के निर्यात के आंकड़े में तीन सालों में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है। तीन साल पहले भारत ने 6.5 लाख मीट्रिक टन से भी कम गोमांस का निर्यात किया था।

भारत में वैसे तो गाय और दूध देने वाली भैंसों के काटने और उनके मांस की बिक्री पर प्रतिबंध है। यूएसडीए के मुताबिक भारत में बैल और भैंसे के मांस का बड़े पैमाने पर निर्यात हो रहा है। यूएसडीए बैल और भैंसे के मांस को भी गोमांस की श्रेणी में रखता है जो मध्य पूर्व, उत्तर अफ्रीका और दक्षिण पूर्वी एशिया में बड़ी संख्या में मांसाहारी लोगों की जरूरतें पूरी करता है।
गो हत्या पर राष्ट्रीय स्तर पर  पाबन्दी लगाई जानी चाहिए. जैसा कि मध्य प्रदेश सहित कुछ राज्यों ने इस दिशा में साहसिक कदम उठाया है ऐसे प्रयास निःसंदेह प्रसंसनीय है. केन्द्रीय स्तर पर भी गोहत्या निरोधक कड़े कानून की आवश्यकता है. सामाजिक एवं राजनितिक संगठनों को इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए.

Sunday, November 27, 2011

सरकार भारत के गौरव को स्वीकार करे, सम्मान दे.

किरण बेदी वह नाम है जिसे हम बचपन से आदर्श भारतीय महिला के रूप में पढ़ते चले आ रहे हैं. किरण बेदी जैसी कर्ताब्यनिष्ठ महिला के बारे में पढ़ कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते रहे है. यह सच है की किरण बेदी के बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है. हम हमेशा किरण जैसी निष्ठावान महिला के आदर्शो पर चलने का प्रयत्न करते है एक अग्रज के रूप में उनके आचरण को दूसरों के सामने उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते है. भारत ही नहीं पूरी दुनिया जानती है की वे एक अद्वितीय महिला है जिन्होंने अपने कर्तव्यों को उस दौर में निष्ठा पूर्वक निभाया जब की चाटुकारिता को परम धर्म माना जाता रहा है. भारत सरकार ही नहीं पूरी दुनिया में उन्हें अपने दृढ कर्त्तव्य निर्वहन के लिए सम्म्मानो से नवाजा गया. आज जब उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में हिस्सा लिया तब उन्हें भ्रष्ट साबित करने की कुचेष्टा की जा रही है, यह निंदनीय है. हम इसकी भर्त्सना करते है. जब देश और दुनिया में उन्हें दर्जनों पदको से नवाजा गया तब यही सरकार उनका गुणगान करते नहीं थकी थी. आज जब सरकार के अन्दर कुछ लोगों पर आंच आई है तब एक भारत की बेटी को भी नहीं बख्शा जा रहा है. जिन्होंने देश की सेवा में अपना जीवन न्यवछावर कर दिया. यह लज्जा की बात है. जिस महिला ने देश का गौरव बढ़ाया आज उसे कलंकित किया जा रहा है. हम यह भली भाति जानते है की हमाने प्रतिनिधियों की यात्रा, सुरक्षा और उनके भत्ते इत्यादि के नाम पर अरबों रुपये खर्च किये जा रहे है. हम इसे सहर्ष स्वीकार करते है. क्योकि आखिर वे हमारे लिए ही कार्य कर रहे है. लेकिन इस परम्परा अनेको बार उनके द्वारा दूषित किया जाता रहा है. हवाई यात्राओं में माइलेज के रूप इनके द्वारा करोडो का चूना इस देश की जनता को लगाया जा रहा है  विदेशी यात्राओं में कई अवसरों पर देश की जनता का पैसा अनावश्यक रूप में जन प्रतिनिधियों द्वारा बर्बाद किया जाता रहा है. उसका व्योरा दिया जाना चाहिए एक-एक पैसे का हिसाब जनता के हित में किये जाने वाले कार्यों के परिप्रेक्ष्य में दिया जाना चाहिए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है की वास्तव में बेईमान लोगो द्वारा एक इमानदार के इमानदारी से बेईमानी खोद-खोद कर निकाली जा रही है. यह लज्जाजनक है.
बड़े सौभाग्य की बात है की हमारे प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है. उन्होनो उन परिस्थितियों में देश को सम्भाला है जब की भारत सहित पूरा विश्व उथल-पुथल और आर्थिक मंदी की दौर से गुजर रहा है. यह एक उल्लेखनीय कार्य है. आज जबकि पूरे यूरोप और अमेरिका की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है उनकी कुशल आर्थिक नीतियों का ही परिणाम है की हमारी अर्थव्यवस्था जो बहुतकुछ वैश्विक परिस्थियों पर निर्भर है बिखरने से बची रही. इस तथ्य को हमें समझना चाहिए. साथ ही हमारे प्रधान मंत्री को भी इस बात पर ध्यान देना चाहिए की अरविन्द केजरारिवाल , किरण बेदी जैसे लोग  हमारे भारत के गौरव के रूप में उभर कर सामने आये है उन्हें स्वीकार करें, सम्मान दें. आज हमारे लिए सौभाग्य की बात है की संकट की घड़ी में अन्ना हजारे जैसे नेता ने पूए देश को एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न किया है. तो वहीँ राहुल गांधी जैसे युवा अपनी गैरवमई विरासत को आगे बढाते हुए देश के गरीबों और किसानो के दुःख दर्द को दूर करने के लिए कमर कास लिया. यह शुभ लक्षण है इसे स्वीकार करने का समय आ गया है. यह सही समय है की इस ऊर्जा का इस्तेमाल देश के विकास में करें न की एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में. यह ध्यान रहे की मरे हुए कुत्ते को कोई लात नहीं मारता. आलोचना भी उसी की होती जो उसके योग्य होता अगर व्यक्ति सही दिशा में है तो आलोचना से उसका कद और ऊचा होता जाता है.

Friday, November 11, 2011

क्रिकेट आस्ट्रेलिया की केपटाउन में दुखद मौत

क्रिकेट आस्ट्रेलिया की केपटाउन में दुखद मौत हो गई है. उसकी आत्मा की शांति के लिए हम क्रिकेट प्रेमियों से दो मिनट मौन रखने की अपील करते है. अब विश्व क्रिकेट में चैम्पियन के रूप में स्थापित टीम की कल्पना करना मुश्किल होगा.