Sunday, April 3, 2011

चैम्पियनो की मानिंद विश्व कप जीता है,फिर क्यों न जश्न मानाये

भारत की विश्वकप विजय वास्तव में अद्भुत एवं ऐतिहासिक हैक्रिकेट खेलने वाले हर मुल्क का पहला ख़्वाब रहता है विश्व कप जीतना और भारत जैसे देश के लिए तो यह जुनून की हद को भी पार कर जाता हैबच्चे, जवान, बुजुर्ग सभी क्रिकेट के खुमार में सराबोर दिखाई पड़ते हैअमिताभ बच्चन जैसे महानायक का विश्वकप जीतने के उन्माद में चीख चिल्लाकर खुशी जाहिर करना हो, या सोनिया गांधी जैसी शीर्ष राजनेत्री द्वारा करोडो दर्शको के समक्ष बच्चो जैसे उछल कर समर्थन और उत्साह प्रकट करना, यह सब इस देश के क्रिकेट उन्माद के चरम स्तर को प्रकट करता हैवास्तव में यह जीत हर मायने में ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि अतुलनीय भी हैक्रिकेट का जन्मदाता देश इंग्लैण्ड भी भी विश्वकप के ३६ सालो के इतिहास में विश्व कप जीतने के लिए आज तक तरसता ही रहा है, आज जबकि उसकी सर्वश्रेष्ट टीम थी जो एशेज जीत कर आई थी लेकिन अपने देशवासियों के लिए एक अदद वर्ल्ड कप नहीं जीत सकीविश्व की सर्वश्रेष्ट टीमो में से एक दक्षिण अफ्रीका जिसके पास हाशिम अमला, कालिस, और डेरेल स्टेन जैसे सर्वश्रेट खिलाड़ी है, उसका सपना भी हर बार की तरह टूट गयायही हाल न्यूजीलैंड टीम का भी है जो की अबा तक विश्व कप जीतने का ख़्वाब सजोये खाली हाथ वापस अपने देश वापस गयीभारत ने शिर्फ़ आस्ट्रेलिया की बादशाहत को ख़त्म कर उसके लगातार चौथी बार विश्वकप जीतने के ख़्वाब को चकनाचूर किया बल्कि श्रीलंका और पकिस्तान के दोबारा विश्वकप जीतने की उम्मीदों पर भी पानी फेर दियाइतने संघर्ष के बाद यदि हमने चैम्पियनो की मानिंद विश्व कप पर कब्जा जमाया है तो फिर क्यों हम जश्न मनाये

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