गांधीवादी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिलकुल सही समय पर मुहीम छेड़ कर सरकार को होश में लेन का प्रयत्न किया है। अन्ना का यह प्रयन्त्न तो सार्थक है ही साथ ही आज जबकि भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, समाज और देश के लिए आवश्यक भी है। लेकिन आश्चर्य नहीं हिगा यदि राजनीतिक दलों की कुचेष्टा से यह आन्दोलन निष्फल साबित हो जाय। भ्रष्टाचार में गले तक डूबे राजनेता इस आन्दोलन को विफल बनाने के लिए हर संभव कुचक्र रचेंगे। अन्ना की जन लोकपाल बिल की माग को स्वीकृति देने का दायित्व उन नेताओं पर है जो की खुद इस भ्रष्टाचार रूपी दलदल में धसे हुए है। और अन्ना की मांग को स्वीकृति देना माने खुद को जेल के सलाखों के पीछे धकेलना होगा। ऐसे में आन्दोलन को हर कीमत पर विफल बनाने का ही प्रयत्न किया जायेगा, इसके लिए नाम मात्र का लोकपाल बनाकर केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने का प्रयत्न करेगी. केंद्र सरकार एक प्रकार से कुंठा की भावना से ग्रसित है. केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियो को ऐसा महसूस होने लगा है कि उनका कोई अस्तिव ही नहीं है. जनलोकापाल उनके प्रयासों से विधायिका पारित करेगी और श्रेय ले उड़ेंगे अन्ना हजारे. हीन भावना से ग्रसित होने के कारण वे एक अच्छा क़ानून बनाने से हिचक रहे है महज श्रेय न हाशिल होने के डर से और अहम को चोट पहुच रही है यह दूसरा आघात है. तिस पर उत्तर प्रदेश का आगामी विधान सभा चुनाव कांग्रेस के युवराज के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है. इन सबके अलावा अगर किसी उपद्रवी ने टीम अन्ना पर हमला बोला तो केंद्र सरकार सांसत में फसेगी ही मिशन उत्तर प्रदेश पर काली छाया मडराने लगेगी. वैसे भी कांग्रेस के रणनीतिकारों ने टीम अन्ना को मशहूर होने में सबसे अधिक योगदान दिया है. अरविन्द केजरीवाल को टीम अन्ना कि बैठक बुलाकर कांग्रेस के इन रणनीतिकारों को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए.
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